जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के चलते भाजपा ने गुजरात चुनाव के लिए नई आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति तय की है। भाजपा गुजरात में 5 दिसम्बर को दूसरे चरण में होने वाले चुनाव के लिए 93 सीटों पर सघन और प्रभावी  प्रचार-प्रसार  (कारपेट बॉम्बिंग) के तहत किया जाएगा। इसके तहत भाजपा अपने  सभी स्टार प्रचारकों और  वरिष्ठ नेताओं को एक साथ चुनाव प्रचार में उतारने की रणनीति तैयार की है। इस बार भाजपा के केंद्रीय संगठन ने देशभर के नेताओं को कारपेट बॉम्बिंग के तहत चुना है। इसमें प्रदेश के नेता भी शामिल हैं।भाजपा गुजरात में दूसरे चरण की इन 93 सीटों पर तीन दिन धुंधाधार प्रचार करने की रणनीति तैयार की है। इसमें कारपेट बॉम्बिंग कार्यक्रम के तहत हर वरिष्ठ नेता को एक विधानसभा की जिम्मेदारी दी गई है। वह नेता तीन दिनों में तय विधानसभा में रुककर नेता प्रचार करेंगे। हर नेता को एक-एक विधानसभा की जिम्मेदारी दे दी गई है। कारपेट बॉम्बिंग के लिए भाजपा ने स्टार प्रचारकों, केंद्रीय मंत्रियों, केंद्रीय नेताओं और प्रदेश के वरिष्ठ पदाधिकारियों को चुना है।भाजपा ने गुजरात के चुनावों में एक खास जिम्मेदारी राजस्थान के 30 विधायकों को सौंपी है। पिछले 27 साल से गुजरात में भाजपा की लगातार सरकार है, फिर भी वहां 38 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा को या तो कभी भी जीत नहीं मिली या पिछले दो चुनावों से पार्टी को लगातार हार ही मिल रही है। इन 38 सीटों को इस बार भाजपा किसी भी सूरत में जीतना चाहती है। भाजपा ने राजस्थान के अपने 30 सीनियर नेताओं की ड्यूटी इन सीटों पर लगाई है। इनमें से 23 तो वर्तमान विधायक हैं, एक सांसद है, एक उप जिला प्रमुख हैं और पांच पूर्व विधायक हैं। ये सभी नेता मेवाड़, वागड़ और मारवाड़ क्षेत्र के हैं। ये तीनों इलाके गुजरात से सटे हुए हैं और वहां के लाखों राजस्थानी परिवार गुजरात में रहते हैं। रोजमर्रा के काम से इन इलाकों से रोजाना दो-ढाई लाख लोग गुजरात आते-जाते भी हैं। गुजरात जाने वाले ये नेता वहां की गुजराती, सिंधी, कच्छी, वागड़ी, मेवाड़ी, थारपारकर बोली-भाषा, संस्कृति, खान-पान, जातीय समीकरणों से भली भांति परिचित हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से कई नेता राजनीतिक रूप से मंझे हुए हैं, जो स्वयं भी तीन-चार बार लगातार चुनाव जीत चुके हैं। यह सभी विधायक गुजरात के लिए रवाना हो चूके है। वहां दो चरणों में एक दिसंबर और 5 दिसंबर को चुनाव होने हैं। ऐसे में आचार संहिता के नियमों के हिसाब से इनमें से 17 विधायक 29 नवंबर को वापस लौटेंगे और 13 विधायक 3 नवंबर को वापस लौटेंगे। भाजपा की इस टीम के समन्वयक का काम देख रहे सुशील कटारा (महामंत्री-भाजपा) ने बताया कि हमें पूरी उम्मीद है कि राजस्थान के भाजपाई विधायकों, पूर्व विधायकों की इस टीम के लंबे अनुभव का गुजरात में भाजपा को फायदा मिलेगा। टीम में शामिल भीलवाड़ा के विधायक विठ्‌ठल शंकर अवस्थी ने बताया कि गांधी नगर क्षेत्र में कुछ सीटों पर शहरी और कुछ पर ग्रामीण मतदाता हैं। हमें जिस तरह की रणनीति का भीलवाड़ा में लगातार चार चुनावों से फायदा मिल रहा है, वही फायदा हम गांधीनगर क्षेत्र को भी दिलाना चाहेंगे। इन विधायकों को चुनाव के अंतिम चरण में क्षेत्र के जातीय समीकरणों को भाजपा के पक्ष में करने और वोटिंग के दिन किस तरह से मतदाताओं को बूथ तक लाना है, इस विषय में रणनीति बनानी है। मूल रूप से इन्हें यही दोनों काम करने हैं। उन्हें पन्ना प्रमुख और मंडल प्रमुखों के साथ तालमेल रखना है। उन्हें अपने राजस्थान के चुनावों का अनुभव पन्ना प्रमुखों और कार्यकर्ताओं के साथ साझा करना है कि किस तरह से उन्हें यहां जीत मिलती रही है। गुजरात में करीब 28 सीटें आदिवासी बहुल हैं। इनमें से 8-10 सीटों पर भी भाजपा लगातार कभी नहीं जीत पाई है। राजस्थान से जो विधायक गुजरात जाने वाली टीम में हैं, उनमें से 8 विधायक आदिवासी हैं, जो मेवाड़ और वागड़ क्षेत्र के हैं। उनकी आदिवासियों के बीच अच्छी पकड़ है। इन विधायकों के साथ एक मौजूदा सांसद (बांसवाड़ा-डूंगरपुर) कनकमल कटारा भी हैं। इस टीम को आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, खान-पान की अच्छी जानकारी है। ऐसे में भाजपा अपना टारगेट हासिल करने की उम्मीद लगाए हुए है। अमृतलाल मीणा, गोपीचंद मीणा, प्रताप लाल भील, समाराम गरासिया, फूल सिंह मीणा, हरेन्द्र निनामा व कैलाश मीणा हैं आदिवासी समुदाय से। राजस्थान के भाजपा  नेताओं की टीम को अहमदाबाद, गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांठा, कच्छ, अरावली, मेहसाणा व पाटन जिलों की 38 सीटों की जिम्मेदारी दी है। अहमदाबाद : श्रीचंद कृपलानी और रूपाराम मुरवातिया, गांधीनगर​​​​​​​ : विठ्ठल शंकर अवस्थी, दीप्ती माहेश्वरी, सुरेश धाकड़, हरेन्द्र निनामा, साबरकांठा : फूल सिंह मीणा को, अरावली :अमृत लाल मीणा, गोपीचंद मीणा व कैलाश मीणा, मेहसाणा : कनकमल कटारा, जब्बर सिंह सांखला, केसाराम चौधरी और पुष्कर तेली, पाटन​​​​​​​: पब्बाराम विश्नोई, गोपाल खंडेलवाल, जोगेश्वर गर्ग, बनासकांठा: शंकर सिंह रावत, जोराराम, जीवाराम चौधरी, जगसीराम कोली, समाराम गरासिया, प्रताप लाल भील, मदन दिलावर और चंद्रभान आक्या, कच्छ: शैतान सिंह भाटी व सुरेन्द्र सिंह राठौड़, गांधीनगर: वासुदेव देवनानी और अविनाश गहलोत को जिम्मेदारी सौंपी गई है । भाजपा के रणनीतिकारों ने राजस्थान के नेताओं को वीरमगाम, साणंद, धोलका, धांधुका, गांधीनगर नॉर्थ, गांधीनगर साउथ, मनसा, करोल, हिम्मतनगर, ईडर, खेडब्रह्मा, भीलोड़ा, मोडसा, बायड़, खेरालू, ऊंझा, बेचराजी, विजापुर, पाटन, वाव, सिद्धपुर, थराड़, धनेरा, रापड़, दांता, वडगाम, पालनपुर, डीसा, कांकरेज, मांडवी, भुज, अंजार और गांधीधाम, कलोल, दाहेगाम, कडी और चानसमा विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है। जहां पर भाजपा पहले कमजोर रही है और इस चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से प्रदेश के नेताओं को लगाया गया है।भाजपा की टीम में सांसद कटारा और पूर्व सांसद कृपलानी को दो-दो बार विधायक रहने के साथ सांसद रहने का अनुभव भी है। दोनों राज्य सरकार में मंत्री भी रहे हैं। इनके अतिरिक्त देवनानी, सुरेन्द्र राठौड़, मदन दिलावर और गर्ग चार-पांच बार विधायक रहे हैं। देवनानी, दिलावर, गर्ग, राठौड़ मंत्री भी रहे हैं। अवस्थी व रावत भीलवाड़ा और ब्यावर से लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं। ऐसे में यह टीम भाजपा को गुजरात की उन सीटों पर जीत दिला सकती है, जो भाजपा के लिए अब तक अबूझ पहेली बनी हुई है।.भाजपा ने अहमदाबाद और गांधीनगर क्षेत्र की 7 विधानसभा सीटों पर कृपलानी और देवनानी की ड्यूटी लगाई है। दोनों मूल रूप से सिंधी समुदाय से हैं। देश भर सिंधी सांसद-विधायक 10 से भी कम हैं। लेकिन राजस्थान में जयपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा की ही तरह गुजरात में भी अहमदाबाद और गांधीनगर इलाकों में करीब तीन लाख सिंधी लोगों की आबादी है। वे सात-आठ सीटों पर निर्णायक वोट बैंक है। गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र से तो देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सात बार सांसद रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने कृपलानी व देवनानी को सिंधी वोट बैंक को भाजपा के पक्ष में बनाए रखने की जिम्मेदारी दी है।भाजपा नेताओं की टीम के सभी सदस्य गुजरात में रहने वाले राजस्थानी समुदाय के लोगों के साथ 8-10 बैठकें भी करेंगे। गुजरात में करीब 6 करोड़ की आबादी में राजस्थान मूल के लोगों की संख्या एक करोड़ तक बताई जाती है। दोनों राज्यों के बीच नाते-रिश्तेदारी भी खूब है। अग्रवाल, माहेश्वरी, खंडेलवाल, जैन, आदिवासी, मुस्लिम, सिंधी, राजपूत, ओबीसी आदि के हजारों परिवार राजस्थान से गुजरात जाकर बसते रहे हैं।