हम अक्सर देखते हैं यदि किसी की चमड़ी कट जाए, हड्डी टूट जाए या मांसपेशी को नुकसान हो जाए तो दो तीन हफ्तों में ये सब वापस नव श्रृजन हो जाते है, चोट की जगह बस एक निशान रह जाता है। इस सब के विपरीत, मनुष्य के हृदय की मांसपेशियां ऐसी होती हैं जहां पर इस तरह की पुनर्रचना नहीं हो सकती। हृदय को जो भी मांसपेशी हार्ट अटैक जैसी घटना में कमजोर हो जाती है वह फिर जीवनपर्यंत कमजोर ही रहती है। यदि हम जान लें कि ऐसा क्यों होता है तो शायद हम हमारे हृदय की बेहतर देखभाल के प्रति ज्यादा सजग हो सकते हैं।

पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर में इस विषय पर एक गहन शोध हुआ है कि हमारे हृदय की मांसपेशियों का कोई नुकसान होने के बाद पुनः निर्माण क्यों नहीं होता। जब हम भ्रूणावस्था और गर्भावस्था की स्थिति में होते हैं तो हृदय मांशपेशियों की कोशिकाएं तीव्र गति से विभाजित हो कर तेजी से हृदय उत्तक ( कार्डियक टिश्यू ) बनाती हैं। कोई भी कोशिका को विभक्त होने के लिए उसके केंद्रक ( न्यूक्लियस ) को लगातार इस संबंध में सूचनाएं मिलती रहनी चाहिए। ध्यान रहे की हर केंद्रक की रक्षा के लिए एक मजबूत लिफाफे जैसा आवरण उसके चारों तरफ होता है जिसमें अति सूक्ष्म छिद्र होते है जहां से विशिष्ट रसायन केंद्र तक विभक्त ( डिवाइड ) होने की सूचनाओं के साथ अन्य सूचनाएं भी पहुंचाते रहते हैं। इस तरह से हम देखते हैं हर एक कोशिका शरीर के अंदर एक अति सूक्ष्म शरीर होता है।

     अब यदि हृदय की कोशिकाओं को हर तरह की सूचनाएं  हर क्षण मिलती रहेंगी तो जीवन का यह आधार अंग हर समय तनाव में रहेगा और शीघ्र ही बूढ़ा हो कर समाप्त हो जायेगा। हृदय को अनेकों तनावों से बचाने के लिए उसकी कोशिकाओं के केन्द्र के बाहरी आवरण के 64 प्रतिशत छिद्र जन्म के साथ ही बंद हो जाते है ताकि अनुपयोगी सूचनाओं से हृदय को बचाया जा सके। जो सूचनाएं रोकी जाती हैं उनमें से एक पुनर्निर्माण की सूचना भी है क्योंकि पुर्निर्माण चोट और तनाव ( ट्रॉमा और स्ट्रेस ) से ही जाग्रत होता है। जीवन में कुछ भी निःशुल्क नहीं होता है। सैकड़ों दैनिक तनावों से सुरक्षित रहने की एवज में हृदय को पुनर्निर्माण की बलि देनी पड़ती है। इसीलिए हमें हमारे हृदय  पर अतिरिक बोझ नहीं डालना चाहिए वरना जीवन डोरी की आशा टूट सकती है और :-

     बुझती आश है ज्योत अंखियन की, समझो गई तो गई।

     ( आरजू लखनवी )