अजमेर ब्यूरो रिपोर्ट।
राजस्व मण्डल अध्यक्ष राजेश्वर सिंह ने कहा कि राजस्व न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों को लोकहित को सर्वाेपरि रखकर अपने बेहतरीन अनुभव के साथ पूर्ण विधिक प्रक्रिया एवं प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर निर्णय पारित करने चाहिये। राजस्व मण्डल अध्यक्ष अजमेर के आरआरटीआई सभागार में राजस्व मंडल की मेजबानी में आयोजित त्रिदिवसीय राजस्व निर्णय लेखन कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे। इस कार्यशाला में राज्य के अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों में पदस्थापित पीठासीन अधिकारी भाग ले रहे हैं।राजस्व मण्डल अध्यक्ष ने कहा कि राजस्व न्यायालयों का संचालन अति संवेदनशील एवं साधारण कृषक एवं आमजन से जुड़ा विषय है, इसे ध्यान में रखते हुए पीठासीन अधिकारियों को पूर्ण समर्पितभाव, निष्ठा एवं जवाबदेही के साथ निर्णय पारित करने चाहिये।
प्रत्येक निर्णय बने नजीर।
मण्डल अध्यक्ष ने कहा कि राजस्व अदालतों में निर्णय की गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया जावे बल्कि हर साक्ष्य और पहलू को मद्देनजर रखते हुये अपनी पूर्ण बौद्धिक क्षमता के आधार पर निर्णय ऐसे लिखे जायें कि प्रत्येक निर्णय राजस्व न्यायालयों के लिये आदर्ष होकर श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में जाना जाये।
हर पहलू बने निर्णय का आधार।
उन्होने कहा कि प्रकरण के निर्णय के लिये पीठासीन अधिकारी सभी पहलुओं का भली भांति अध्ययन करे। सभी पक्षों के अभिवचनों, विवाद बिन्दुओं, साक्ष्य एवं दस्तावेजों को ध्यान में रखकर तनकीवार निर्णय पारित किये जाएं। अपीलीय न्यायालय को चाहिये कि वे अनिवार्यतः विपक्षी को नोटिस जारी करने के बाद ही प्रकरण का अंतिम रूप से निस्तारण करें।
सिद्धान्तों एवं आदर्शों से न हो समझौता।
राजेश्वर सिंह ने कहा कि राजस्व न्यायालयों की प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिये कार्यप्रणाली में पीठासीन अधिकारी न्यायालय सिद्धान्तों एवं आदर्शों से कभी समझौता नहीं करें। पीठासीन अधिकारियों को चाहिये कि वे न्यायालयों की बेहतरीन कार्यप्रणाली के लिए निरन्तर अध्ययन करें।कार्यशालाओं में रखे जाने वाले सभी महत्वपूर्ण पक्षों को ध्यानपूर्वक सुनें एवं उन्हे कार्य व्यवहार में लाने के हरसम्भव र्प्रयास करें।
नवाचारों से बने आदर्श वातावरण।
मण्डल अध्यक्ष ने कहा कि राजस्व अधिकारियों को अपने दीर्घकालिक अनुभव एवं श्रेष्ठ व्यक्तित्व का परिचय कार्यक्षेेत्र में नवाचारों के आधार पर देना चाहिये। यही उपाय आपकी श्रेष्ठ प्रशासक के रूप में पहचान बनायेंगे।
राजस्व अधिकारियों में हो न्याय-कौशल।
राजस्व मण्डल निबंधक महावीर प्रसाद ने कहा कि न्याय प्रदान करना कौशल आधारित कार्य है। पीठासीन अधिकारियों को न्यायालयों में निष्कर्षों, सिद्धान्तों एवं न्यायिक कार्यव्यवहार की श्रेष्ठता को निर्णय का आधार बनाना चाहिये। उन्होंने कहा कि निर्णय के मूल्यांकनकर्ता स्वयं पक्षकार हैं। यदि निर्णय से वे संतुष्ट होते है तो अदालतों में अपीलों की स्थिति नहीं बनती, ऐसे में संक्षिप्त, सरल व स्पष्टता आधारित निर्णय पारित किये जाने चाहिये। उन्होने त्रुटिविहीन एवं विधिसम्मत लेखन की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा कि सर्वाेच्च न्यायालय ने 16 अगस्त 2022 को पारित एसबीआई बनाम अजय कुमार सूद के प्रकरण में न्यायालयों में गुणवत्तापूर्ण निर्णय पारित करने पर जोर दिया है। उन्होने कहा कि कार्यशाला के प्रतिभागी जिलों में आयोजित कार्यशालाओं में मास्टर टेनर की भूमिका निभाकर निर्णय लेखन गुणवत्ता कार्य में अपना योगदान दें।
सिविल प्रक्रिया संहिता पुस्तक का विमोचन।
कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश एचएसयू आसनानी द्वारा लिखित ‘सिविल प्रक्रिया संहिताः प्रावधान प्रक्रिया एवं उपयोगी सुझाव’ पुस्तक का विमोचन मण्डल अध्यक्ष ने किया। आसनानी ने बताया कि कानून की भाषा, प्रावधान, आशय को सरल भाषा में समझाने के उद्देश्य को लेकर पुस्तक लेखन किया गया है। उन्होंने निर्णय लेखन कार्यशालाओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्यावहारिक बताते हुए कहा कि ये प्रशासक वर्ग के लिए न्यायिक कार्य के क्षेत्र में श्रेष्ठता का आधार सिद्ध होगी।कार्यक्रम में आरम्भ में आर.आर.टी.आई निदेशक चेतन कुमार त्रिपाठी ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि विगत वर्ष तीन विविध स्तरीय निर्णय लेखन कार्यशालाओं का सफल आयोजन किया जा चुका है। इन कार्यशालाओं से प्रशिक्षण प्राप्त मास्टर ट्रेनर्स को जिलों में प्रशिक्षण के दायित्व सौंपे जायेंगे। कार्यक्रम का संयोजन सोनम रावत ने किया। कार्यक्रम में राजस्व मण्डल उप निबंधक ओम प्रभा, पुस्तक प्रकाशक पारस बापना, अब्दुल वाहिद चिश्ती, जिलों से आये राजस्व अपील अधिकारी, भूप्रबंध अधिकारी, सहायक कलक्टर एवं उपखण्ड अधिकारी मौजूद थे।
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