जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रशासनिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन यह अधिकारी अपनी समस्याओं और मांगों के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की मेहरबानी पर निर्भर रहते हैं। कहने को तो इन अधिकारियों ने अपनी समस्याओं और मांगों को पूरा कराने के लिए राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद का गठन कर रखा है। इसका अध्यक्ष हमेशा ही सीएमओ में कार्य करने वाले अधिकारी को बनाया जाता है। वह अधिकारी अपनी मांगों के लिए हक जताने की वजह आईएएस अधिकारियों की मेहरबानी की कृपा के लिए अपनी जुगाड़ बिठाने का काम करता रहता है। मौजूदा आरएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष गौरव बजाड़ सीएमओ मे तैनात है । वे अपनी मांगों के ज्ञापन को सीधे तौर पर मुख्यमंत्री के पास प्रस्तुत करने की जगह मुख्य सचिव तक पहुंचाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। ऐसा देखा गया है कि परिषद के पदाधिकारी सीएस से समय लेकर मिलने जाते हैं तो उन्हें सुना जरूर जाता है और यह आश्वस्त किया जाता है कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए अपनी अनुशंसा के साथ मुख्यमंत्री को भेज दिया जाएगा। लेकिन मांगे बरसों से पूरी नहीं हो पा रही है। आरएएस अधिकारियों का एक सबसे बड़ा दर्द यही होता है कि उनके तबादले बड़ी तादाद में और लगातार किए जाते रहते हैं। उन्हें जिला स्तर पर मिलने वाले आवासों में फर्नीचर और अन्य सुविधाएं नहीं मिलती ऐसे में उन्हें अपने परिवार को रखने के लिए अपना सामान बार-बार लाना और ले जाना पड़ता है। जयपुर जैसे शहर में तो आवास ही नहीं मिल पाता है और किराए के मकानों में रहने के लिए मजबूर रहते हैं। इन अधिकारियों ने अब सरकार के समक्ष यह मांग रखी है कि उन्हें जहां भी तबादला किया जाए वेल फर्निश्ड हाउस दिया जाए।आरएएस अधिकारियों ने अपनी दूसरी मांग को रखते हुए कहा है कि दुविधा यह है कि जिस संभाग या जिले और उपखंड में उन्हें लगाया जाता है वहां वे प्रशासनिक दृष्टि से प्रमुख कहलाए जाते हैं लेकिन उनका वेतन मुख्य अभियंता,अतिरिक्त मुख्य अभियंता और कॉलेज के प्रोफेसर, विभिन्न विभागों के आदि कई पद हैं, जिनका वेतन आरएएस से ज्यादा है।उन्होंने सरकार से मांग की है कि विसंगति को तत्काल दूर किया जाए। उपखंड मुख्यालयों पर तैनात आरएएस अधिकारियों को गन-मैन तक की सुविधा नहीं मिलती, जबकि वे कानून-व्यवस्था को सम्भालने वाले प्रमुख जिम्मेदार अधिकारी के रूप में शामिल हैं। उत्तरप्रदेश, सिक्किम, ओडीशा, झारखंड, आंध्रप्रदेश, केरल, तैलंगाना सहित बहुत से राज्यों में राज्य प्रशासनिक सेवा में आने के बाद अधिकारी को 7 प्रमोशन मिलते हैं, जबकि राजस्थान में यह मौके सिर्फ पांच हैं। आरएएस अधिकारियों ने मांग रखी है कि राजस्थान में हायर सुपर टाइम स्केल में आरएएस का आखरी प्रमोशन (पांचवा) होता है। प्रमोशन के इन मौकों को बढ़ाकर 6 से 7 तक किया जाना चाहिए। आखरी प्रमोशन अपेक्स स्केल में होना चाहिए और उसका वेतन भी चीफ इंजीनियर-प्रोफेसर आदि से हर सूरत में ज्यादा ही होना चाहिए। अन्य राज्यों में प्रशासनिक सेवा (पीसीएस) को पास करके जब युवा अधिकारी बनते हैं, तो वे महज 9 से 14 साल की सेवा के बाद पदोन्नत होकर आईएएस बन जाते हैं। जबकि राजस्थान में ऐसा नहीं है। राजस्थान में प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को आईएएस बनने का मौका करीब 25-27 वर्ष की सेवा के बाद मिलता है। यह मौका भी सभी अधिकारियों को नहीं मिल पाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि एक युवा 24 से 35 साल की आयु के बीच आरएएस अधिकारी बनता है। उसके बाद उसे 25-26 साल बाद जब आईएएस बनने का मौका मिलता भी है, तो उसकी उम्र 50 से 60 के बीच होती है। केन्द्र सरकार के नियमानुसार आईएएस में पदोन्नत होते वक्त संबंधित अधिकारी की आयु 54 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ऐसे में मौका मिलने पर भी वे आरएएस अधिकारी तो आईएएस बन ही नहीं पाते जो इस आयु सीमा को पार कर जाते हैं। आरएएस काडर के 95 प्रतिशत अधिकारी बिना आईएएस बने ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। आरएएस अधिकारियों की लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि यदि किसी अधिकारी को निलंबित किया जाता है तो उसे वापस बहाल शीघ्र किया जाए। अधिकारियों की मांग है कि पहले रिव्यु की समय अवधि 90 दिन से घटाकर 60 दिन की जाए और दूसरे रिव्यु की समय अवधि 180 दिनों से कम कर के 120 दिनों तक सीमित की जाए। इस बदलाव से अधिकारियों के मनोबल पर सकारात्मक असर पड़ेगा और अनावश्यक मामलों में भी कमी हो सकेगी। आर ए एस प्रशासनिक अधिकारियों की एसोसिएशन अपनी मांगों के लिए हड़ताल नहीं कर पाती है। उन्हें अपनी मांगों के लिए आईएएस अधिकारियों की मेहरबानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में इन अधिकारियों को आर ए एस एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर सक्षम और योग्य अधिकारी को निर्वाचित करना चाहिए। जिससे कि उनकी मांगों के लिए संघर्ष खुले रूप से किया जा सके । पिछले 20 साल से आर एस एसोसिएशन की स्थिति कमजोर बनी हुई है। इसका मूल कारण यही है कि अध्यक्ष मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत अधिकारी को ही बनाया जाता है ।
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