आज कल कई लोग मधुमेह को समूल नष्ट करने के दावे करते सुने देखे जाते हैं। कितने ही लोग बड़ी उम्मीदें लेकर इन विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होते नजर आते है। अपने स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने का अधिकार हर व्यक्ति का अपना होता है पर बेहतर होगा कि यह निर्णय तथ्यों पर आधारित हो। इसके लिए सबसे पहले मधुमेह के बारे में सामान्य ज्ञान होना चाहिए ताकि उम्मीदों के थोथे पर्वत न बनाए जाएं।
डायबिटीज दो तरह की होती है। प्रथम प्रकार वाली कम लोगों में होती है, किसी वायरस या
अन्य संक्रमण या आक्रमण के फलस्वरूप पैंक्रियाज (अग्नाशय) की इन्सुलिन बनाने वाली कोशिकाओं
के नष्ट होने के कारण होती है। इस में पैंक्रियाज के अलावा अन्य तंत्र सामान्य बने
रहते हैं बस शरीर में इन्सुलिन नहीं बनती इसलिए इन्सुलिन इंजेक्शन लेना ही एकमात्र
इलाज है। यहां कोई भी विकल्प नहीं है इसलिए प्रकार प्रथम मधुमेह को समूल नष्ट करने
के किसी दावे में नहीं फंसना चाहिए। प्रथम दृष्टि में यह रोग ज्यादा खतरनाक लगता है
पर ऐसा है नहीं क्योंकि इसमें शरीर के विभिन्न तंत्र और मेटाबॉलिज्म ( चयापचन) प्रभावित
नहीं होते हैं। खानपान का नियंत्रण और सही मात्रा में इन्सुलिन लेकर लगभग सामान्य जीवन
बिताया जा सकता है। पर याद रहे, भोजन नियंत्रण और आनंदित मन बहुत ही आवश्यक पहलू हैं।
प्रकार द्वतीय एक अनुवांशिक रोग है जो शरीर के हर तंत्र, हर कोशिका, हर कार्यप्रणाली
और पूरे के पूरे चयापचय आयामों को प्रभावित करता है। चूंकि इसमें मुख से ली जाने वाली
दवाएं असरकार होती हैं, प्रारंभिक असर संतोषप्रद होता है तो लोग इसे प्रकार प्रथम से
ज्यादा आसान रोग मानते हैं पर ऐसा है नहीं। अनियंत्रित प्रकार दो मधुरोग एक दीमक है
जो शरीर की एक एक कोशिका को नुकसान पहुंचा सकता है।
इस प्रकार द्वतीय में यदि शरीर के वजन, भोजन के आकार और प्रकार, जीवनशैली में परिवर्तन
और सकारात्मक मानसिकता का सहारा लिया जाए तो एक अच्छी खासी प्रतिशत जनसंख्या को मधुमेह
से काफी राहत मिल सकती है और बिना दवाओं के काम चल सकता है। इस उद्देश्य में सफलता
पाने के लिए कड़े अनुशासन की जीवनपर्यंत आवश्यकता पड़ती है।
यदि इस वर्ग का मधुमेह यदि बिना दवाओं के नियंत्रण में आ जाता है तो इसे चमत्कार नहीं
माना जाना चाहिए। ऐसा मेटाबॉलिज्म को सक्रिय रखने से होता है पर इस से रोग समूल
नष्ट नहीं होता है, महज एक हद, एक समय तक नियंत्रित मात्र होता है। इस सारी जानकारी
को पृष्टभूमि में रख कर ही कदम उठाना चाहिए ताकि भविष्य की निराशा से बचाव हो सके।
सृष्टि में सब कुछ विज्ञान है, किसी ना किसी क्रिया प्रतिक्रिया पर टिका है। यहां कुछ
भी छुपा हुआ चमत्कार नहीं है जिसे महज चंद लोग ही जानते हों।
जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
कबीर।।
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