जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
विश्व इतिहास के सबसे लंबे चले सफल किसान आंदोलन के पश्चात इस बार के बजट से किसानों को विशेष अपेक्षा थी कि सरकार का ध्यान इस बजट में कृषि और किसान पर रहेगा। लेकिन पूरे बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस प्रकार किसानों की अनदेखी इस बजट में की है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। मोदी सरकार पिछले 6 वर्ष से लगातार 2022 तक किसान की आमदनी को दुगना करने का स्लोगन देती आई है। लेकिन पहली बार बजट में किसान की आमदनी को लेकर किसी भी प्रकार का जिक्र नहीं किया गया है। बजट में बताया गया है कि 2021-22 में 1.63 करोड़ किसानों से 2.37 लाख करोड़ रुपए की गेहूं एवं धान की खरीद की गई है एवं इसका पैसा सीधा किसान के खाते में गया है। वित्त मंत्री द्वारा यह आंकड़ा ऐसे प्रस्तुत किया गया है जैसे कोई बड़ी घोषणा की गई हो।वास्तविकता यह है कि किसान के खाते में पहले से ही एमएसपी का पैसा उसके खाते में ही जा रहा था। एवं पिछली बार 2020-21 में 2 करोड किसानों की कुल खरीद 2.48 लाख करोड़ रुपए की थी। अर्थात एमएसपी पर खरीद की किसानों की संख्या एवं कुल खरीद मूल्य में कमी को भी वित्त मंत्री चढ़ाकर दिखा रही है। ओर ऐसा लग रहा है जैसे कोई नई घोषणा कर दी हो। पिछले बजटो में लगातार घोषणा की जा रही जीरो बजटिंग फार्मिंग को इस बार पुनः नए शब्दों में पिरो कर प्रस्तुत कर दिया गया है।जिसके तहत इस बजट में कहा गया है कि गंगा के दोनों ओर 5 किलोमीटर के कोरिडोर में जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रोजेक्ट चलाया जाएगा एवं किसानों को रसायन रहित खेती को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष स्कीम चलाई जाएगी। यह बहुत ही दुखद बात है कि भारत सरकार कृषि के क्षेत्र में गंभीर प्रयास करने के स्थान पर गंगा कोरिडोर का नाम लेकर धार्मिक भावनाओं को भुनाने का प्रयास कर रही है। अभी तक पायलट प्रोजेक्ट किसी ऐसी सीमित जगह पर चलाए जाते रहे हैं, जहां उसका सही तरीके से मूल्यांकन हो सके। लेकिन इस बार गंगा के कोरिडोर का नाम लेकर बजट में चुनावी भाषणबाजी का काम किया है। इसके लिए बजट में किसी भी प्रकार का अतिरिक्त आवंटन नहीं किया गया है। इसी प्रकार की एक और घोषणा बजट में की गई है कि कृषि की लागत को कम करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय के सिलेबस में परिवर्तन किया जाएगा। वस्तुतः यह एक नीतिगत फैसला है जिसका बजट से सीधा कोई संबंध नहीं होता है। बजट में कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि कृषि शोध एवं अनुसंधान के लिए अतिरिक्त राशि का आवंटन किया गया है। कृषि के सिलेबस में बदलाव से कृषि की लागत को जोड़ना, बजट की गंभीरता को बहुत ही कम कर देता है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बार का बजट किसानों से किसान आंदोलन का बदला लेने वाला है। ड्रोन से छिड़काव जैसी ख्याली पुलाव जैसी बातें बजट में किसान के लिए की गई है जो कि एक बहुत बड़ा भद्दा मजाक है। भारतीय किसान यूनियन वित्त मंत्री द्वारा किसानों से प्रस्तुत किए गए इस प्रकार के शब्दजाल के माध्यम से किए गए भद्दे मजाक की कड़े शब्दों में आलोचना करती है।
0 टिप्पणियाँ