यही क़शमक़श है जारी
टहनी बनें या आरी
दिल तो मचान ही था
कब हो गया शिकारी
घायल हैं सब जमूरे
थकता नहीं मदारी
काटे भी जोड़ भी दे
अल्फ़ाज़ की दुधारी
चौसर की आँख नम है
पासे हुए जुआरी
अफ़सोस की है सूरत
ये ज़िन्दगी हमारी
जीती थी क़हक़हों ने
अश्कों ने बाज़ी हारी
इक तो नयी मुहब्बत
उस पर ये बेक़रारी
पत्थर तो है उठाना
हल्का लगे या भारी
होता है खेल पूरा
आती न अपनी बारी
झोली है सबकी खाली
दाता हो या भिखारी
कैसे चुकाये सागर
आँसू की ये उधारी
उस पर ही लग गयी ये
जिसने नज़र उतारी
कहते हैं वक़्त जिसको
है चाल उसकी न्यारी
अपनी ही बेबसी पर
हँसती है ग़मगुसारी
काँटे बिना चलेगी
कैसे मेरी सुनारी
आबादियों ने कर ली
बर्बादियों से यारी
ज़ंजीर बन गयी है
आँचल की इक किनारी
ऐ रूह क्यों है रोती
कुछ तो कभी बता री
सब देव सो रहे हैं
पुजते हैं अब पुजारी
है इश्क़ अब तिजारत
है हुस्न कारोबारी
क्यों पूछते हो हमसे
कैसे यहाँ गुज़ारी
सच्चाई कर रही है
झूठों की पर्दादारी
जब-जब दिमाग़ सींचा
उजड़ी है दिल की क्यारी
नदिया भी ढूँढती है
'साहिल' नमी तुम्हारी
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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