मैंने
कब सोचा था
बाँट दी जाऊँगी
सामान
की तरह
क्यों
आख़िर क्यों
नहीं किया
भूल सुधार
कुन्ती ने
सब कुछ
जान लेने के बाद भी
क्यों
नहीं सूझी
धर्म की कोई भी
बात
धर्मराज को
क्यों अंधे हो गये
ये सब आँख वाले ?
जाओ दुर्योधन
तुम्हारा अपराध
क्षमा किया
मैंने !
©️✍ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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