कहना क्या अब ठान लिया है
हर मुश्किल में मुस्काएँगे
बहुत गये दिन रोते-रोते
सहरा में अश्कों को बोते
जाने कब से देख रहे थे
ख़ुद को खाली होते-होते
सोच लिया था अब जीवन में
कोई गीत नहीं गायेंगे
मुस्कानों से मन छिलता था
फूल ख़ुशी का कब खिलता था
दुनिया हँसती हम पर हमको
रोने में ही सुख मिलता था
लगता था कि बहुत जल्द हम
रोते-रोते मर जायेंगे
फिर घर के हालात को देखा
मुरझाये जज़्बात को देखा
ज़िम्मेदारी वाले सारे
गीत और नग़मात को देखा
देखा गर हम नहीं रह तो
ये सब कैसे रह पायेंगे
छोड़ दिया फिर ख़ुद पर रोना
मायूसी का काफ़िर कोना
किया फ़ैसला लड़ना ही है
हो जाये जो भी है होना
अब तो हम हैं और ज़िन्दगी
जिसको जी कर दिखलायेंगे
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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