माना मैं भरपूर नहीं हूँ
पर कवि हूँ मज़दूर नहीं हूँ
तुझसे लेनी पड़े नसीहत
इतना भी मजबूर नहीं हूँ
(2)
ख़ुद से यूँ उलझेगा कौन
उलझा तो सुलझेगा कौन
परामर्श देंगे सारे
मजबूरी समझेगा कौन
(3)
कविता को क़िस्सा मत कर
क़िस्सा भी जग सा मत कर
छन्द नहीं आता तुझको
विवश क़लम इतना मत कर
(4)
जटिल विकलता है कितनी
मन में जड़ता है कितनी
जो सोचा वह कह न सके
हाय विवशता है कितनी
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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