(1)

कहा प्रेम ने प्रेम पर ,

दोहे कह दो पाँच ।

और समेटो पाँच में,

पूर्ण-प्रेम की आँच ।।

(2)

पूर्ण-प्रेम की आँच को , 

झेल सका है कौन ।

ज्ञानी-कामी सब रहे ,

इसी प्रश्न पर मौन ।।

(3)

इसी प्रश्न पर मौन सब ,

यही प्रश्न वाचाल ।

उत्तर के पीछे यहाँ , 

भागे सदा सवाल ।।

(4)

भागे सदा सवाल सब ,

और टँगा है फ़्रेम ।

कहाँ प्रेम के चित्र पर ,

मिले योग या क्षेम ।।

(5)

मिले योग या क्षेम तो ,

रस्ता हो अवरुद्ध ।

किन्तु प्रेम की राह ही ,

हमें बनाती बुद्ध ।।

©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'