ज़ीस्त पर चढ़ी अब तो साँस की उधारी है
ज़िन्दगी के शानों पर मौत की सवारी है
क्या सबब है चेहरे पर दाग़ है ये मुद्दत से
चाँद की भला किसने यूँ नज़र उतारी है
क्या करें सही शिकायत अब दोष दें भला किसको
आशियाँ भी अपना था बर्क़ भी हमारी है
अक्स को हिकारत से देखते हो क्यों यारो
आइने की आँखों में ख़ुद ही शर्मसारी है
इस तरह उतारा है क़र्ज़ इक तबस्सुम का
आँसुओं से धो धो कर शक्ल ये निखारी है
क्यों हमें डराते हो रौशनी-अँधेरों से
"ज़ुल्फ़ों-रुख़ के साये में ज़िन्दगी गुज़ारी है"
कह दिया समुन्दर से एक दिन ये 'साहिल' ने
ये नदी हमारी थी ये नदी हमारी है
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
[0:23 pm, 31/10/2021] Lokesh K S Sahil Sb: ज़ीस्त पर चढ़ी अब तो साँस की उधारी है
ज़िन्दगी के शानों पर मौत की सवारी है
क्या सबब है चेहरे पर दाग़ है ये मुद्दत से
चाँद की भला किसने यूँ नज़र उतारी है
क्या करें शिकायत अब दोष दें भला किसको
आशियाँ भी अपना था बर्क़ भी हमारी है
अक्स को हिकारत से देखते हो क्यों यारो
आइने की आँखों में ख़ुद ही शर्मसारी है
इस तरह उतारा है क़र्ज़ इक तबस्सुम का
आँसुओं से धो धो कर शक्ल ये निखारी है
क्यों हमें डराते हो रौशनी-अँधेरों से
"ज़ुल्फ़ों-रुख़ के साये में ज़िन्दगी गुज़ारी है"
कह दिया समुन्दर से एक दिन ये 'साहिल' ने
ये नदी हमारी थी ये नदी हमारी है
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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