अजमेर ब्यूरो रिपोर्ट।
बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर 6 दिसंबर 1993 को लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में बम धमाके हुए थे। इस मामले में अजमेर की टाडा कोर्ट ने तीन आतंकियों पर पर फैसला सुनाया है। टाडा कोर्ट में चार्ज पर बहस 24 सितंबर को हुई थी। आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा, इरफान, हमीमुद्दीन पर किस-किस धारा में आरोप बनते हैं, इस पर कोर्ट ने अपना फैसला 30 सितंबर को सुनाया है। अब टाडा कोर्ट में इन्हीं धाराओं में मुकदमा चलेगा। तीनों को कड़ी सुरक्षा में कोर्ट में लाया गया। अब इस मामले की सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी। बता दे, टाडा की धारा 3, 3, 3, 2, 5, 6 और 120बी, विस्फोटक पदार्थ की धारा 3 और 4, विस्फोटक पदार्थ की धारा 9 और 120 बी, पीडीपी एक्ट की धारा 4 , रेलवे अधिनियम की धारा 150 व 151, आईपीसी की धारा 302, 120 बी, 323, 324, 325, 326, 120 बी और 436 के तहत आरोप लगाए हैं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि 25 अक्टूबर से पहले सरकारी वकील की ओर से गवाहों की सूची कोर्ट में पेश करनी होगी। इसकी सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी।
यह था पुरा मामला।
आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा UP की गाजियाबाद जेल में बंद था। 24 सितंबर को उसको गाजियाबाद जेल से अजमेर पहुंचा दिया गया। तब से वह अजमेर जेल में हैं। टुंडा आखिरी बार साल-2013 में नेपाल बॉर्डर से पकड़ा गया था। टुंडा के दो साथी हमीमुद्द्दीन और इरफान उर्फ पप्पू पहले से अजमेर जेल में बंद हैं। अब्दुल करीम उर्फ टुंडा उत्तर प्रदेश में हापुड़ जिले के कस्बा पिलखुवा का रहने वाला है। अपने जीवन की शुरुआत में वह पिलखुवा कस्बे में कारपेंटर (बढ़ई) का काम करता था, लेकिन चला नहीं। इसके बाद कपड़े का कारोबार करने मुंबई चला गया। मुंबई के भिवंडी इलाके में उसके कुछ रिश्तेदार रहते थे। 1985 में भिवंडी के दंगों में उसके कुछ रिश्तेदार मारे गए। इनका बदला लेने के लिए उसने आतंकवाद की राह पकड़ी। 1980 के आसपास वह आतंकी संगठनों के संपर्क में आया। 80 के दशक में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से इसकी ट्रेनिंग ली और फिर लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आया। 6 दिसंबर 1993 को ट्रेनों में विस्फोट के वक्त करीम टुंडा लश्कर का विस्फोटक विशेषज्ञ था। मुंबई के डॉक्टर जलीस अंसारी, नांदेड के आजम गौरी और करीम टुंडा ने ‘तंजीम इस्लाम उर्फ मुसलमीन’ संगठन बनाकर बाबरी विध्वंस का बदला लेने के लिए 1993 में पांच बड़े शहरों में ट्रेनों में बम धमाके किए थे। 1996 में दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के सामने बम धमाके का आरोप भी टुंडा पर है। 1996 में सुरक्षा एजेंसी इंटरपोल ने उसका रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। साल-2000 में टुंडा के बांग्लादेश में मारे जाने की खबरें आईं, लेकिन 2005 में दिल्ली में पकड़े गए लश्कर के आतंकी अब्दुल रज्जाक मसूद ने टुंडा के जिंदा होने का खुलासा किया। 2001 में संसद भवन पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से जिन 20 आतंकियों के प्रत्यर्पण की मांग की थी, उसमें टुंडा भी था। उस पर करीब 33 क्रिमिनल केस हैं और करीब 1997-98 में करीब 40 बम धमाके कराने के आरोप हैं। लश्कर जैसे कुख्यात आतंकी गिरोह से जुड़े अब्दुल करीम का नाम टुंडा एक हादसे के बाद पड़ा। वर्ष 1985 में टुंडा टोंक जिले की एक मस्जिद में जिहाद की मीटिंग ले रहा था। इस दौरान वह पाइप गन चलाकर दिखा रहा था। तभी यह गन फट गई, जिसमें उसका हाथ उड़ गया। इसके कारण उसका नाम टुंडा पड़ गया।
देश में केवल तीन ही टाडा कोर्ट।
टाडा कानून के तहत पकड़े जाने वाले आरोपियों की सुनवाई के लिए देशभर मे केवल तीन विशेष अदालतें हैं। मुंबई, अजमेर और श्रीनगर। श्रीनगर कोर्ट अभी नई बनी है। इसलिए उत्तर भारत से जुड़े ज्यादातर मामलों की सुनवाई अजमेर की टाडा कोर्ट में होती है। वहीं दक्षिण भारत से जुड़े मामलों में मुंबई में सुनवाई होती है।
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