एक रस्सी को खल गया पत्थर
फिर तो कितना बदल गया पत्थर
भीड़ तो बात करने आयी थी
जाने कैसे उछल गया पत्थर
एक शीशे की ताब ऐसी थी
देखते ही सँभल गया पत्थर
उसके दिल की दुहाई है मौला
कितने आँसू निगल गया पत्थर
लाज रखनी थी देवताओं की
ख़ुद ही मूरत में ढल गया पत्थर
फूल इक गुलसितां में ऐसा था
जिसकी ख़ुशबू से जल गया पत्थर
कोई तो देखता था 'साहिल' से
तैरने को मचल गया पत्थर
©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
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