चंद्रशेखर पदयात्रा क्यों कर रहे थे?



ऋषिकेश राजोरिया 

चंद्रशेखर की पदयात्रा भूतो  भविष्यति। यह मेरे जीवन का हैरतअंगेज और भावी जीवन की तस्वीर तय कर देने वाला अनुभव था। चंद्रशेखर खुद और उनके साथ चलने वाले लोग क्यों पदयात्रा कर रहे थेइस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश कई लोग कर रहे थे। चंद्रशेखर के लिए यह दिल्ली में चलने वाली उठापटक की राजनीति से कुछ समय के लिए विराम लेने का प्रयास था। यकीनन जनता पार्टी की जो गति हुईउसने उनके मन को उद्वेलित किया होगा। इसके अलावा दिल्ली के राजनीतिक माहौल में हमेशा एक जैसे चेहरेएक जैसा उनका व्यवहार और छलकपट से भरपूर उनका जीवन। इससे वे ऊब गए थे।

चंद्रशेखर चाहते थे कि अच्छे लोग भी राजनीति से जुड़ें। उनकी पदयात्रा राजनीति में नए लोगों की तलाश के लिए भी थी। कई नए लोग पदयात्रा में शामिल हो गए थे। रामविलास पासवान, सुबोधकांत सहाय जैसे नेताओं ने चंद्रशेखर से ही प्रेरणा ली है। मध्य प्रदेश पहुंचने तक राष्ट्रीय राजनीति में चंद्रशेखर के घनिष्ठ सहयोगीउनके परिवार के लोग पदयात्रा के आसपास भी नहीं थे। जैसे वे अकेले सफर पर निकले होंकुछ अनजान चेहरों के साथ। उस पदयात्रा से देश में एक राजनीतिक वातावरण बन गया था। खास बात थी चंद्रशेखर का व्यक्तित्व। बड़ा नेता बनने के लिए अपने आप पर किस हद तक काबू रखना पड़ता हैयह चंद्रशेखर के व्यक्तित्व से समझा जा सकता है। चौबीस घंटे सबके बीच।

पैदल चलते हुए चंद्रशेखर ग्वालियर पार करने के बाद राजस्थान की सीमा में पहुंचे। राजस्थान में पदयात्रा में सहयोग की जिम्मेदारी मोहन प्रकाश ने संभाली। मोहन प्रकाश बाद में कांग्रेस के बड़े नेता हो गए। राजस्थान से उत्तर प्रदेश पहुंचने तक पदयात्रा में इस कदर भीड़ रहतीजैसे कोई चुनाव होने वाला हो। पदयात्रा शुरू होने से पहले कन्याकुमारी से दिल्ली तक का जो यात्रा कार्यक्रम तय किया गया थाउसी के मुताबिक पदयात्रा चल रही थी। मध्य प्रदेश में मई में गर्मियों के दौरान पदयात्रा में कुछ परेशानी हुई। कई बार बीच में पड़ने वाले गांवों का अंतराल काफी लंबा हो जाता था। एक दिन में चालीस किलोमीटर तक का सफर हो जाता।

कई जगह पेड़ नहीं होते थे। दोपहर के भोजन में पदयात्रियों को कई जगह दाल बाटी मिलतीजिसे देखते ही तमिलनाडु और केरल के पदयात्रियों का मूड बिगड़ जाता। जहां छाछ मिलतीवहां वे टूट पड़ते। कुछ पदयात्री प्याज अपने साथ रखते थे। चंद्रशेखर भी यह गर्मी पदयात्रियों के बीच रहते हुए सहन करते। मध्य प्रदेश पार करने के बाद राजस्थान का कुछ हिस्सा तय किया। धौलपुर से राजाखेड़ा तक। पदयात्रा बंबई आगरा रोड पर आगे बढ़ रही थी।

मथुरा में ठाकुर जोगेन्द्र सिंह ने भव्य स्वागत किया। आगरा में रामजीलाल सुमन ने पदयात्रा के रास्ते में गुलाब के फूलों का बारिश करवाई। आगरा में दो दिन के ठहराव के दौरान पदयात्रियों ने ताजमहल देखाआगरा का किला देखाफतेहपुर सीकरी देखा। इस तरह पदयात्रा से पर्यटन का उद्देश्य भी अनायास पूरा हो रहा था। आगरा से दिल्ली तक पहुंचते हुए पदयात्रा पूरे शबाब पर थी। हरियाणा में पदयात्रा का जलवा ही अलग बन गया। वहां हरिमोहन धवन को देखाजो चंडीगढ़ के बड़े नेता थे। चमक दमक के साथ रहते थेहैट लगाते थे।

रामविलास पासवानसुबोध कांत सहाय उन दिनों चंद्रशेखर के साथ थे। वे भी कुछ समय के लिए पदयात्रा में पहुंचे। जॉर्ज फर्नांडिस जैसे कई राष्ट्रीय नेताओं ने पदयात्रा की हंसी उड़ाई थीवे सब चंद्रशेखर को देखने को लिए उमड़ रहे जन समूह को देखकर हतप्रभ थे। चंद्रशेखर निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अपनी धुन में दिल्ली तक कदमताल कर रहे थे। पदयात्रा में कुछ लोगों को याद करना जरूरी है। एक डॉक्टर पंकज थेबनारस के रहने वालेजो पदयात्रा में चल रही सुनीता के पति थे। वे ज्ञानी थे और अच्छी कविताएं लिख लेते थे। माहौल बनाने में उस्ताद थे। संघ के प्रखर आलोचक थे। कल्पना परूलेकर थीजो मध्य प्रदेश में कई किलोमीटर तक पदयात्रा में चली थीं। वे बाद में महिदपुर की विधायक बनीं।

पदयात्रा का कार्यक्रम बनाने में एक सहयोगी गोयल साहब भी थेजो भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के प्रमुख थे। यह चंद्रशेखर की महानता थी कि पदयात्रा में जो लोग उनके साथ चलेउनकी जरा भी उपेक्षा उन्होंने नहीं की। जहां चंद्रशेखर का सम्मान होतावहां पदयात्रियों का भी सम्मान होता था। पदयात्रा के परिणाम की शायद चंद्रशेखर ने भी कल्पना नहीं की होगी। पदयात्रा के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने अनिवार्य रूप से अपनी जगह बना ली थी। हरियाणा के होडल और पलवल में हजारों की भीड़ थी। जबर्दस्त माहौल था। चंद्रशेखर और उनके साथ चल रहे पदयात्रियों के लिए दिल्ली नजदीक आ रही थी

(लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं। Rajkaj.News की इन विचारों से सहमति अनिवार्य नहीं है। किंतु हम अभिव्यक्ति की स्वंत्रता का आदर करते हैं।)