(1)
उससे ही क्यों ज़िन्दग़ी ,
रहती है नाराज़ ।
जिसको भी आता यहाँ ,
जीने का अन्दाज़ ।।
(2)
ख़ुद से कैसे हो सके ,
वहाँ स्वयं से बात ।
लफ़्फ़ाज़ी में ज़िन्दगी ,
जहाँ रहे दिन-रात ।।
(3)
ये अदना सी ज़िन्दगी ,
क्या-क्या रंग दिखाय ।
पदमा खन्ना है कभी ,
कभी निरूपा राय ।।
©️✍ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'
(लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं। Rajkaj.News की इन विचारों से सहमति अनिवार्य नहीं है। किंतु हम अभिव्यक्ति की स्वंत्रता का आदर करते हैं।)
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