ऋषिकेश राजोरिया
पदयात्रा की लोकप्रियता
चंद्रशेखर की पदयात्रा कर्नाटक में सफल रही और महाष्ट्र में हिट होने लगी। बंबई पार करने के बाद पदयात्रा सुपर हिट हो गई। आश्चर्य की बात यह कि इतने पदयात्री चल रहे थे, लेकिन कोई अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। अप्रैल खत्म होते होते गर्मी की छुट्टियां शुरू होने से तमाम स्कूल बंद हो चुके थे। पदयात्रा का ठहराव दोपहर को और रात को रोजाना किसी न किसी स्कूल में होता। गर्मी भी तेज होने लगी थी। हर जगह नई जगह का खाना, नई जगह का पानी। पदयात्रा में कई लोग चंद्रशेखर से मिलने आने लगे। वे आते, बात करते, कुछ देर साथ चलते और लौट जाते। पदयात्रा में सबसे ज्यादा इज्जत पत्रकारों की होती थी। पदयात्रा पर तरह तरह के लेख पत्र पत्रिकाओं में छपने लगे थे। पत्रकारों को चंद्रशेखर अपने पास सम्मान से बैठाते। बात करते।
बड़े बड़े अखबारों ने पदयात्रा कवर करने के लिए संवाददाताओं की नियुक्ति कर दी थी, जो पदयात्रा में साथ चलते और शाम को अपने अखबार में खबर भेजते। सुरेश प्रभु भी कुछ समय पदयात्रा में चले थे, जो बाद में मोदी सरकार में मंत्री बने। मेरा चौपाइयां और दोहे रचने का सिलसिला जारी था। रोजाना एक दो दोहे रचकर मैं चंद्रशेखर और पदयात्रियों को सुनाता था। बदकिस्मती से वह सब मुझे याद नहीं है और वह डायरी नष्ट हो चुकी है, जिसमें यात्रा कांड लिखा था। करीब साठ दोहे थे। सुंदरकांड के बराबर। सिर्फ एक ही दोहा याद है, जो मैंने पहली बार लिखा था और जिसका उल्लेख मैं ऊपर कर चुका हूं। इससे पदयात्रा में मेरी इज्जत बन गई थी। बाकी पदयात्री मुझे भाव देने लगे थे।
पदयात्रा में जो ट्रक साथ में चल रहा था, वह बंबई से बिपिन संगार साथ में लाए थे। उन्हें सब बिपिन भाई कहते थे। ट्रक का चालक जॉन नामक व्यक्ति था। उसके साथ उसकी बीबी भी ट्रक में साथ चलती थी। बिपिन भाई के साथ दो और व्यक्ति थे, दिलीप छेड़ा और केटी केनिया। पदयात्रा में इन तीनों का गुट था। इनके साथ चौथा मैं जुड़ गया। पदयात्रा में काफी लोग जुड़ने लगे थे। कौन आ रहा है, शामिल हो रहा है और कौन लौट जा रहा है, समझ में नहीं आता था। एक रजिस्टर चंद्रन के पास रहता था, जिसमें स्थायी रूप से चल रहे पदयात्रियों के नाम दर्ज होते थे। पदयात्रा में खर्च भी काफी था। कम से कम भोजन और नाश्ते का खर्च तो था ही। अगर कहीं से प्रायोजन न हो तो यह खर्च चंद्रशेखर को खुद ही करना था। साथ में कुछ गाडियां अलग चल रही थी।
खर्च निकालने का एक तरीका चंद्रशेखर ने निकाला। वे जहां भी भाषण देते तो आखिरी में लोगों से चंदा देने की अपील करते। इस तरह कुछ पैसा इकट्ठा हो जाता था। धुले में चंद्रशेखर की इतनी बड़ी सभा हुई और इस कदर लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया कि सभी हैरान थे। कुछ महिलाओं ने अपने आभूषण तक उतार कर दे दिए थे। इस तरह पदयात्रा महाराष्ट्र पार कर मध्य प्रदेश की सीमा पर पहुंची।
मध्य प्रदेश में पदयात्रा का पहला ठहराव सेंधवा में था। मध्य प्रदेश के कई पदयात्री पदयात्रा में शामिल हुए, जिनमें तपन भट्टाचार्य, अनिल जैन, विष्णु शर्मा आदि प्रमुख थे। नईदुनिया के पत्रकार शिव अनुराग पटैरया से भी सेंधवा में ही पहली बार मुलाकात हुई थी। पदयात्रा की व्यवस्था में सहयोग देने के लिए शरद यादव पहुंचे थे। उनसे पहली बार मुलाकात सेंधवा में ही हुई। पदयात्रा का सिलसिला गजब का था। पदयात्रा एक गांव, कस्बे, शहर से दूसरे गांव, कस्बे, शहर तक पहुंचती थी। हाईवे पर चलना होता था। जब एक गांव से पदयात्रा रवाना होती तो बड़ी संख्या में लोग अगले गांव तक साथ जाते थे। उनके लौटने पर दूसरे गांव के लोग पदयात्रा में कुछ समय शामिल हो जाते।
इस तरह पदयात्रा में सैकड़ों हजारों पदयात्रियों की मौजूदगी दिन में बनी रहती। कुछ लोग कहते, पदयात्रा के जरिए देश में क्रांति होगी। इसके जरिए चंद्रशेखर देश के बड़े नेता बनकर उभर रहे थे। मध्य प्रदेश में पदयात्रियों की संख्या बढ़ती देख बिपिन भाई ने सुझाव दिया कि स्थायी रूप से चल रहे सभी पदयात्रियों के परिचय पत्र बना देना चाहिए। चंद्रशेखर को सुझाव पसंद आया। देवास में सभी पदयात्रियों के फोटो खिंच गए, परिचय पत्र बन गए। देवास में अरुण शौरी भी पदयात्रा में पधारे थे, जो मैगसेसे पुरस्कार जीतने के कारण लोकप्रिय हो गए थे। वे शायद इंदौर से पदयात्रा में शामिल हुए थे। अभिनेता विजेन्द्र घाटगे ने भी उस दौरान काफी समय तक पदयात्रा में शिरकत की थी।
इंदौर में पदयात्रा पहुंची तो मैं पदयात्रियों के बीच ठहरने की बजाय घर चला गया। लोहे का संदूक मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने पप्पू मामा के घर जाकर वह संदूक बदल लिया। लोहे का संदूक उन्हें दे दिया और एक सूटकेस ले लिया। पदयात्रा शाजापुर पहुंची तो वहां राजनारायण को देखने का मौका मिला, जिन्होंने इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव में हराया था। वे जनता पार्टी की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। पदयात्रा आगे बढ़ रही थी और जीवन में नए नए अनुभव जुड़ते जा रहे थे। मुरैना शिवपुरी क्षेत्र में जंगल के बीच घिरा स्थान देखने को मिला, जहां कुख्यात डकैत मोहर सिंह, माधो सिंह अपना दरबार लगाते थे। इस दौरान पदयात्रा में यमुना प्रसाद शास्त्री भी पहुंचे थे, जो नेत्रहीन होने के बावजूद रीवा के बड़े समाजवादी नेता थे। ग्वालियर में रमाशंकर सिंह ने पदयात्रा का भव्य स्वागत किया। इस तरह पूरे तामझाम के साथ पदयात्रा आगे बढ़ रही थी।
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