दिल्ली, सौ खरगोश से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, इसी तरह सौ शक मिलकर प्रमाण नहीं बन सकते हैं' दिल्ली कोर्ट ने दिल्ली दंगे मामले के दो अभियुक्तों को डिस्चार्ज किया अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने दिल्ली दंगे मामले में हथियार या गोला-बारूद का उपयोग कर हत्या करने का प्रयास के मामले में दो अभियुक्तों को डिस्चार्ज किया और फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब "क्राइम एंड पनिशमेंट" की लाइनें को कोट करते हुए कहा कि, "सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, इसी तरह सौ शक मिलकर प्रमाण नहीं बन सकते हैं।" इमरान और बाबू, दोनों अभियुक्त पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 143, धारा 144, धारा 147, धारा 148, धारा 149, धारा 307 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि दोनों कथित तौर पर एक गैरकानूनी असेंबली में हथियारों से लैस थे, जिसने पिछले साल 25 फरवरी को मौजपुर रेड लाइट के दंगे में शामिल पाया गया था। यह भी आरोप लगाया गया कि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत उक्त तिथि के लिए पुलिस के निषेधात्मक आदेश के बावजूद, दोनों ने लोक सेवक द्वारा घोषित आदेशों की अवहेलना करने का अपराध किया था।
यह देखते हुए कि दोनों के खिलाफ गैरकानूनी असेंबली का हिस्सा होने, हथियारों से लैस होने और दंगा करने के लिए एक प्रथम दृष्टया मामला था, हालांकि अदालत ने दोनों को डिस्चार्ज किया, जिसे अभियोजन पक्ष के अनुसार दोनों अभियुक्तों ने राहुल को दंगे में गोली मारी और इससे उसकी मौत हो गई। इसके चलते दोनों को सीआरपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत आरोपी बनाया गया था।
पुलिस के एक लंबी जांच के बाद निष्कर्ष निकाला कि राहुल पर भीड़ द्वारा गोली मारी गई और मौत हो गई। इसके साथ ही पुलिस ने कहा कि यह गोली जानबूझ कर हत्या करने के इरादे से चलाई गई थी। हालांकि, इस बिंदु पर, अदालत ने कहा कि पुलिस ने राहुल को कभी नहीं देखा है। वास्तव में, राहुल ने अपने एमएलसी (मेडिको लीगल केस) में गलत फोन नंबर दिया और इसलिए जब तक पुलिस अस्पताल में पहुंची, तब तक वह मर चुका था। कोर्ट ने फैसले में कहा कि,"इस मामले में यह कौन कह सकता है कि किसने, किसके गोली मारी है और कहां पर गोली मारी है।
कथित पीड़ित को पुलिस ने कभी नहीं देखा है। पीड़ित ने कभी दंगे में चली गोली बारे में कोई बयान नहीं दिया है।" फिर इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 307 कैसे लगाई गई है, जब पुलिस की जांच में पीड़ित के बयान ही नहीं है। गोली कैसे लगी, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।"
यह देखते हुए कि आपराधिक विधिशास्त्र (Criminal Jurisprudence) कहता है कि अभियुक्त के खिलाफ आरोप तय करने के लिए कुछ सबूत होने चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि, अनुमान (Presumtion) को खींचने से सबूत नहीं बन जाएगा।
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