राजनीति कहने को तो इस चार अक्षर का शब्द है, लेकिन इसके मायने बहुत गहरे हैं। यह नीति कब और क्या उलटफेर कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही एक  नजारा प्रदेश कांग्रेस में नजर आया जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश की राजनीति में अपने चहेते सहयोगक रहे मुख्य सचेतक महेश जोशी को प्रदेश से उठाकर सीधे कांग्रेस की नेशनल राजनीति में प्रवेश करा दिया। क्योंकि अब मौका है बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव का.

किसान आंदोलन को अपने राजनीतिक हाशिए तक उठा चुकी कांग्रेस के पास अब मौका है आगामी 5 विधानसभा चुनाव में अपना दमखम दिखाने का। अकेले राहुल गांधी के दम पर चल रही कांग्रेस पार्टी की आगामी हलचलें भी उनकी ही नीति लागू करने का इशारा दर्शा रही है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है ममता दीदी के वर्चस्व वाले बंगाल का। 

यहां मोदी गुट ने पहले ही अपनी पहुंच दर्शा कर दीदी की विरासत में सेंध मार दी है।  कैलाश विजयवर्गीय जैसे खांटी भाजपाई को प्रदेश प्रभारी बना कर मोदी-शाह ने अपने इरादे पहले ही स्पष्ट कर दिये थे। रही सही कसर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे मारवाड़ी मंत्रियों ने पूरी कर दी। वहीं राहुल भी वामदलों के साथ मिलकर इस बदलाव में अपनी घुसपैठ को आगे करने में मशगूल हो गए हैं और इसी का नजारा है कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के नाम।

इस कमेटी में राहुल ने राजस्थान को महत्व देते हुए एक ऐसा इशारा किया है जिससे कि ना केवल गहलोत की पूछ बढ़ी है वहीं प्रदेश की राजनीति में महेश जोशी को भी उडान भरने का सिग्नल मिल गया है।


गहलोत के इशारे और सोनिया गांधी की मुहर पर अब राहुल गांधी ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि पार्टी को अब युवाओं युवाओं के हाथ में ही सौंपना है। पिछले दिनों कश्मीर में जी 23 की मीटिंग के नाम पर एकजुट हुए कांग्रेस के हाशिये पर पटके गए नेताओं को स्पष्ट रूप से यह संकेत दिया गया है कि पार्टी अब उनके भरोसे नहीं बल्कि युवाओं के दमखम पर ही आगे बढ़ेगी। 

कांग्रेस की नीति में यह बदलाव अचानक नहीं बल्कि काफी ठोक बजाकर निर्णय लेने की क्षमता से आया है। पिछले कुछ दिनों में, कुछ महीनों में राहुल गांधी की ओर से नाराजगी का दर्शाया गया माहौल भी इसी बात का एक ज्वलंत उदाहरण है। 

दरअसल राहुल अपनी पार्टी में युवा वर्ग को महत्व देना चाहते हैं। शुरू से ही उनकी मंशा यह रही कि हाशिए पर बैठ चुकी कांग्रेस को केवल आगामी पीढ़ी ही बचा सकती है। लेकिन पुश्तैनी रूप से कांग्रेस में अपनी जड़ें जमा चुके कई नेताओं को राहुल का यह नजारा अपनी ही नीवं हिलाने जैसा नजर आ रहा है और यही वजह है कि आज देश की सबसे बड़ी पार्टी दो धडों मे बटंती नजर आ रही है।


फिलहाल बंगाल के चुनाव में पार्टी ने स्क्रीनिंग कमेटी का जो चयन किया है उसे साफ तौर पर जातिवाद पर अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखना कहा जा सकता है। पार्टी ने से –मु  का नारा बुलंद करते हुए स्वर्णो और मुस्लिमों को अपने दम पर लाने का इशारा किया है। वहीं दूसरी जातियों को वामदलों के पाले में डाला है। अब देखना यह है कि कांग्रेस का से –मु  यानी स्वर्ण और मुस्लिम वाला फैसला उसे आगामी चुनावों में क्या मायने दिखाता है?


आपको बता दें कि इस पूरे घटनाक्रम में देखा जाए तो गहलोत एक मुख्य बिंदु नजर आ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में अपने पुत्र वैभव को टिकट दिलवाने के बाद उसकी हार का दंश झेल चुके गहलोत एक बार फिर अपने विरोधियों को पटखनी देने में सफल साबित हुए हैं। जयपुर शहर के सांसद महेश जोशी को बंगाल चुनाव की स्क्रीनिंग कमेटी में दाखिल करवाना गहलोत की ऊंची पहुंच को दर्शा रहा है। 

राजनीतिक मायनों में गहलोत ने यह दिखा दिया है कि कई दशकों की इस राजनीतिक पारी में आज भी पार्टी में उनके सामने कोई नहीं टिकता और यह भी है कि गांधी परिवार में वह आगामी पीढ़ियों तक भी दखल रखने में दमखम रखते हैं।