झालावाड़ से हरिमोहन चोडॉवत 

आपने होली देखी होगी होली खेली भी होगी मगर क्या आपने ऐसी  होली देखी ओर खेली है जिसमे कपड़े पहनने की जरूरत ही नही पड़ती । अगर आपने कपड़े पहने हैं और यह फटने से बच जाए तो फिर भगवान भरोसे। औऱ नही बचे तो आपकी किस्मत मे आपके तन पर रह भी जाता है तो बस नाम मात्र का कपड़ा । होली के कई रूप आपने देखे औऱ सुने होंगे मगर झालरापाटन  मे आज भी कपड़ा फाड़ होली की चलन है।  यहां आज भी लोग, खास तौर पर बच्चे औऱ युवा यह परंपरा निभा रहे है । 

यह है कपड़ा फाड़ होली । इस होली मे बच्चे औऱ युवा घर से निकलते है, अपने दोस्तो के साथ रंग गुलाल लगाते है, खूब मस्ती भी करते हे मगर उस मस्ती मे नया रंग जुड़ जाता है, कपड़ा फाड़ने का । कोई भी इसे बुरा नही मानता है। धीरे धीरे यह लोग बाजारो मे घुमते फिरते है। नाच गाना, भद्दी टिप्पणी करना, यह सब आज भी चलता है, कोई बुरा नही मानता । ओर जब यह दिन मे मस्ती करते हुए बाजारो मे निकलते हे तो धीरे धीरे सब के कपड़े फाड़ते चले जाते है औऱ जब घर लोटने का समय होता हे तब नाम मात्र के कपड़े ही शरीर पर होते है। यह इस होली का एक अलग रूप भी है ।  

 यही नही आज भी लोग हर समाज के इकठ्ठा होकर सब एक दूसरे के घर जाकर होली के रंग लगाते है। महिलाये होली का गीत गाकर चलती है। सब एक दूसरों को रंग मिठास के रंग. मे सराबोर करते है, शायद यही है सच्ची होली।