ब्यूरो रिपोर्ट!
प्रदेश की संस्कृति को पहचान दिलाने की दिशा में शुमार त्योहारों में से एक है गणगौर का त्योहार। कुंवारी कन्याओं के साथ ही सुहागिन महिलाओं के लिए यह त्यौहार अपना एक विशेष महत्व रखता है। यूं तो तीज का त्योहार भी इस कड़ी में महत्वपूर्ण है, लेकिन गणगौर का उत्सव एक दृष्टि में सब त्योहारों का राजा है। जी हां, यह एक मात्र ऐसा त्योहार है जो लगातार 16 दिन चलने के बाद समाप्त होता है। इसकी शुरुआत होती है, चैत्र मास की प्रतिपदा से और इसके ठीक 15 दिन बाद गणगौर पूजन की समाप्ति के साथ ही होता है गणगौर मेले का आयोजन और राजस्थान प्रदेश में थोड़े समय के लिए त्योहारों की श्रंखला में विराम लग जाता है। राजस्थान की एक लोकोक्ति में कहा भी जाता है कि तीज त्यौहारां उपजी, ले डूबी गणगौर । यानी प्रदेश के त्योहार और उत्सव की शुरुआत होती है, तीज फेस्टिवल से और समापन होता है गणगौर त्यौहार से।
यह एक सनातन परंपरा चली आ रही है और आधुनिक युग में भी इसका निर्वहन बखूबी हो रहा है। इसी कड़ी में इस बार भी गणगौर पूजन की शुरुआत हुई धूलंडी के दिन। प्रदेश के हर गली मोहल्ले में शिव और पार्वती के प्रतीक ईसर गणगौर की स्थापना हुई और गणगौर माता के 16 दिवसीय उत्सव का आगाज हो गया। सुहागिन महिलाओं ने जहां अपने अमर सुहाग की कामना की, वहीं कुंवारी कन्याओं ने अपने लिए अच्छा वर मिलने की चाहत के साथ गणगौर माता का पूजन शुरू किया। अब यह सिलसिला लगातार 16 दिन तक चलेगा।
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